समास (Compound Word )
समास (Compound Word )
जब दो या दो से अधिक पद बीच की विभक्ति को छोड़कर मिलते है,तो पदों के इस मेल को समास कहते है।
'समास के भेद '
समास के मुख्य सात भेद है:-
(1) तत्पुरुष समास ( Determinative Compound)
(2) कर्मधारय समास (Appositional Compound)
(3) द्विगु समास (Numeral Compound)
(4) बहुव्रीहि समास (Attributive Compound)
(5) द्वन्द समास (Copulative Compound)
(6) अव्ययीभाव समास(Adverbial Compound)
(7) नत्र समास
1.तत्पुरुष समास :- जिस समास में उत्तर पद प्रधान होता है। इनके निर्माण में दो पदों के बीच कारक चिन्हों का लोप हो जाता है। जैसे -
राजपुत्र -राजा का पुत्र । इसमे पिछले पद का मुख्य अर्थ लिखा गया है।
गुणहीन ,सिरदर्द ,आपबीती,रामभक्त ।
- तुलसीकृत= तुलसी से कृत
- शराहत= शर से आहत
- राहखर्च= राह के लिए खर्च
- राजा का कुमार= राजकुमार
2.कर्मधारय समास :- जो समास विशेषण -विशेश्य और उपमेय -उपमान से मिलकर बनते है,उन्हें कर्मधारय समास कहते है।
दूसरे शब्दों में-कर्ता-तत्पुरुष को ही कर्मधारय कहते हैं।
पहचान: विग्रह करने पर दोनों पद के मध्य में 'है जो', 'के समान' आदि आते है। जैसे -
- चरणकमल -कमल के समानचरण ।
- कमलनयन -कमल के समान नयन ।
- नीलगगन -नीला है जो गगन ।
- नवयुवक- नव है जो युवक
- पीतांबर- पीत है जो अंबर
- परमेश्र्वर -परम है जो ईश्र्वर
- नीलकमल- नील है जो कमल
- महात्मा - महान है जो आत्मा
- कनकलता - कनक की-सी लता
- प्राणप्रिय - प्राणों के समान प्रिय
- देहलता - देह रूपी लता
- लालमणि - लाल है जो मणि
- नीलकंठ - नीला है जो कंठ
- महादेव - महान है जो देव
- अधमरा - आधा है जो मरा
- परमानंद - परम है जो आनंद
3.द्विगु समास :- जिस समास में पहला पद संख्यावाचक विशेषण होता है,उसे द्विगु समास कहते है। जैसे - त्रिभुवन ,त्रिफला ,चौमासा ,दशमुख
- सप्तसिंधु सात सिंधुओं का समूह
- दोपहर दो पहरों का समूह
- त्रिलोक तीनों लोको का समाहार
- तिरंगा तीन रंगों का समूह
- दुअत्री दो आनों का समाहार
- पंचतंत्र पाँच तंत्रों का समूह
- पंजाब पाँच आबों (नदियों) का समूह
- पंचरत्न पाँच रत्नों का समूह
4.बहुव्रीहि समास :- जिस समास में शाब्दिक अर्थ को छोड़ कर अन्य विशेष का बोध होता है,उसे बहुव्रीहि समास कहते है।
जिस समस्त-पद में कोई पद प्रधान नहीं होता, दोनों पद मिल कर किसी तीसरे पद की ओर संकेत करते है, उसमें बहुव्रीहि समास होता है। 'नीलकंठ', नीला है कंठ जिसका अर्थात शिव। यहाँ पर दोनों पदों ने मिल कर एक तीसरे पद 'शिव' का संकेत किया, इसलिए यह बहुव्रीहि समास है। जैसे -
- घनश्याम -घन के समान श्याम है जो -कृष्ण
- दशानन - दस मुहवाला -रावण
- प्रधानमंत्री - मंत्रियो में प्रधान है जो (प्रधानमंत्री)
- पंकज - (पंक में पैदा हो जो (कमल)
- अनहोनी - न होने वाली घटना (कोई विशेष घटना)
- निशाचर - निशा में विचरण करने वाला (राक्षस)
- चौलड़ी - चार है लड़ियाँ जिसमे (माला)
- विषधर - (विष को धारण करने वाला (सर्प)
- मृगनयनी - मृग के समान नयन हैं जिसके अर्थात सुंदर स्त्री
- त्रिलोचन - तीन लोचन हैं जिसके अर्थात शिव
- महावीर - महान वीर है जो अर्थात हनुमान
- सत्यप्रिय - सत्य प्रिय है जिसे अर्थात विशेष व्यक्ति
5.द्वंद समास :- इस समास में दोनों पद प्रधान होते है,लेकिन दोनों के बीच 'और' शब्द का लोप होता है।
जैसे - हार-जीत,पाप-पुण्य ,वेद-पुराण,लेन-देन ।
6.अव्ययीभाव समास :- जिस समास का प्रथम पद अव्यय हो,और उसी का अर्थ प्रधान हो,उसे अव्ययीभाव समास कहते है।
सरल शब्दो में- जिस समास का पहला पद (पूर्वपद) अव्यय तथा प्रधान हो, उसे अव्ययीभाव समास कहते है।जैसे - यथाशक्ति = (यथा +शक्ति ) यहाँ यथा अव्यय का मुख्य अर्थ लिखा गया है,अर्थात यथा जितनी शक्ति । इसी प्रकार - रातों रात ,आजन्म ,यथोचित ,बेशक,प्रतिवर्ष ।
सरल शब्दो में- जिस समास का पहला पद (पूर्वपद) अव्यय तथा प्रधान हो, उसे अव्ययीभाव समास कहते है।जैसे - यथाशक्ति = (यथा +शक्ति ) यहाँ यथा अव्यय का मुख्य अर्थ लिखा गया है,अर्थात यथा जितनी शक्ति । इसी प्रकार - रातों रात ,आजन्म ,यथोचित ,बेशक,प्रतिवर्ष ।
- प्रतिदिन- दिन-दिन
- यथाविधि- विधि के अनुसार
- यथाक्रम- क्रम के अनुसार
- यथाशक्ति- शक्ति के अनुसार
- बेखटके- बिना खटके के
- बेखबर- बिना खबर के
- रातोंरात- रात ही रात में
- कानोंकान- कान ही कान में
- भुखमरा- भूख से मरा हुआ
- आजन्म- जन्म से लेकर
7.नत्र समास :- इसमे नही का बोध होता है। जैसे - अनपढ़,अनजान ,अज्ञान ।
- अनाचार न आचार
- अनदेखा न देखा हुआ
- अन्याय न न्याय
- अनभिज्ञ न अभिज्ञ
- नालायक नहीं लायक
- अचल न चल
- नास्तिक न आस्तिक
- अनुचित न उचित
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